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‘ भविष्य झाँकने का एक प्रयास ’                                                                                      

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 : वटसावित्री : 

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ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को वटसावित्री का पर्व मनाया जाता है । ऐसी मान्यता है कि यदि स्त्री इस दिन व्रत करती है तो, उसका पति दीर्घायु को प्राप्त हो जाता है । जिस तरह से सावित्री ने अपने अपने पति सत्यवान को यमराज के मुख से बचा लिया था उसी प्रकार से इस व्रत को करने वाली सभी स्त्री के पति पर आने वाल हर संकट दूर हो जाता है ।

इस व्रत के दिन स्त्रियाँ बरगद वृक्ष के नीचे सावित्री-सत्यवान का पूजन करती है । इस कारण से यह व्रत का नाम वट-सावित्री के नाम से प्रसिद्ध है । इस व्रत का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है । हमारे धर्मिक ग्रंथों में वट वृक्ष में पीपल के वृक्ष की तरह हीं ब्रह्मा, विष्णु व महेश की उपस्थिति मानी गयी है तथा ऐसी मान्यता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर पूजन, व्रत आदि करने तथा कथा सुनने से मनोवांछित फल मिलता है ।

सर्वप्रथम विवाहित स्त्रिया सुबह उठकर अपने नित्य क्रम से निवृत होकर नये वस्त्र पहनकर सोलह श्रृंगार कर लें । इसके बाद पूजन के सभी सामग्री को टोकरी में व्यवस्थित कर ले। तत्पश्चात् वट वृक्ष के नीचे जाकर वहाँ पर सफाई कर सभी सामग्री रख लें ।

सबसे पहले सत्यवान तथा सावित्री की मूर्ति को निकाल कर वहाँ स्थापित करें । अब धूप, दीप, रोली, सिंदूर से पूजन करें । लाल कपड़ा सत्यवान-सावित्री को अर्पित करें तथा फल समर्पित करें । फिर बांस के पंखे से सत्यवान सावित्री को हवा करें । बरगद के पत्ते को अपने बालों में लगायें । अब धागे को बरगद के पेड़ में बाँधकर यथा शक्ति इक्कीस बार परिक्रमा करें इसके बाद सावित्री-सत्यवान की कथा पंडित जी से सुने तथा उन्हें यथा सम्भव दक्षिणा दें या कथा स्वयम पढे । फिर अपने-अपने घरों को लौटकर, घर में आकर उसी पंखें से अपने पति को हवा करें तथा उनका आशीर्वाद लें । उसके बाद शाम के वक्त मीठा भोजन करें ।

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