‘ भविष्य झाँकने का एक प्रयास ’
दान ( ? )“ कृपया अपने जीवन मे सही मार्गदर्शन प्राप्त करने हेतु हस्तलिखित सम्पूर्ण जन्म कुंडली का निर्माण अवश्य करायेँ “
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षोडशोपचार द्वारा पूजन विधि :
१. प्रथम उपचार :
देवता का आवाहन करना देवता अपनी शक्तिसहित पधारें तथा मूर्ति में प्रतिष्ठित होकर हमारी पूजा ग्रहण करें, इस हेतु संपूर्ण निर्मल भाव से देवता से प्रार्थना करें, अर्थात् उनका `आवाहन’ करें । आवाहन के समय हाथ में अक्षत एवं तुलसीदल अथवा पुष्प लें । इस आवाहन के उपरांत देवता का नाम लेकर अंत में ॐ सुर्याये ‘नमः’ बोलते हुए उन्हें अक्षत, तुलसी दल अथवा पुष्प अर्पित कर हाथ जोडें ।
२. दूसरा उपचार :
देवता को आसन देना देवता के आगमन पर उन्हें विराजमान होने के लिए सुंदर आसन दिया है, ऐसी कल्पना कर विशिष्ट देवता को प्रिय बिल्व पत्र-पुष्प दूब आदि अथवा अक्षत अर्पित करें ।
३. तीसरा उपचार :
देवता को चरण धोने के लिए जल देना; पाद-प्रक्षालन देवता को ताम्रपात्र में रखकर उनके चरणों पर आचमनी से जल चढाएं ।
४. चौथा उपचार :
अघ्र्य (देवता को हाथ धोने के लिए जल देना; हस्त-प्रक्षालन) आचमनी में जल लेकर उसमें चंदन, अक्षत तथा पुष्प डालकर, उसे मूर्ति के हाथ पर चढाएं ।
५. पांचवां उपचार :
आचमन (देवता को कुल्ला करने के लिए जल देना; मुख-प्रक्षालन) आचमनी में कर्पूर-मिश्रित जल लेकर, उसे देवता को अर्पित करने के लिए ताम्रपात्र में छोडें ।
६. छठा उपचार :
स्नान (देवता पर जल चढाना) धातु की मूर्ति, यंत्र, इत्यादि हों, तो उन पर जल चढाएं । मिट्टी की मूर्ति हो, तो पुष्प अथवा तुलसीदल से केवल जल छिडकें । चित्र हो, तो पहले उसे सूखे वस्त्र से पोंछ लें । तदुपरांत गीले कपडेसे, पुनः सूखे कपडे से पोंछें । देवताओं की प्रतिमाओं को पोंछने के लिए प्रयुक्त वस्त्र स्वच्छ हो । वस्त्र नया हो, तो एक-दो बार पानी में भिगोकर तथा सुखाकर प्रयोग करें । अपने कंधे के उपरने से अथवा धारण किए वस्त्र से देवताओं को न पोंछें । देवताओं को पहले पंचामृत ( दूध, दही, घी, मधु एवं शक्कर का मिश्रण ) से स्नान करवाएं । तदुपरांत देवता को चंदन तथा कर्पूर-मिश्रित जल से स्नान करवाएं । आचमनी से जल चढाकर सुगंधित द्रव्य-मिश्रित जल से स्नान करवाएं । देवताओं को गुनगुना जल से स्नान करवाएं । देवताओं को सुगंधित द्रव्य-मिश्रित जल से स्नान करवाने के उपरांत गुनगुना जल डालकर महाभिषेक स्नान करवाएं । महाभिषेक करते समय देवताओं पर धीमी गति की निरंतर धारा पडती रहे, इसके लिए अभिषेकपात्र का प्रयोग करें । संभव हो तो महाभिषेक के समय विविध सूक्तों का उच्चारण करें ।ऊ. महाभिषेक के उपरांत पुनः आचमन के लिए ताम्रपात्र में जल छोडे तथा देवताओं की प्रतिमाओं को पोंछकर रखें ।
७. सातवां उपचार :
देवता को वस्त्र देना देवताओं को कपास के दो वस्त्र अर्पित करें । एक वस्त्र देवता के गले में अलंकार के समान पहनाएं तथा दूसरा देवता के चरणों में रखें ।
८. आठवां उपचार :
देवता को उपवस्त्र अथवा यज्ञोपवीत (जनेऊ देना) अर्पित करना देवताओं को यज्ञोपवीत (उपवस्त्र) अर्पित करें ।
९. सर्वप्रथम, देवता को स्नान करायें तत्पश्चात अनामिका अंगुली से चंदन लगाएं । इसके उपरांत दाएं हाथ से चुटकीभर पहले हल्दी, फिर कुमकुम देवता के चरणों में अर्पित करें ।
१०. देवता को चढाए जाने वाले पत्र-पुष्प न सूंघें । देवता को बिल्वपत्र और दूर्वा चढाएं । तत्पश्चात देवता को ताजे पुष्प चढाएं । पुष्प देवता के चरणों में अर्पित करें । पुष्प अपनी ओर कर पुष्प अर्पित करें ।
११. देवता को धूप दिखायें । धूप दिखाते समय तथा अगरबत्ती घुमाते समय बाएं हाथ से घंटी बजाएं ।
१२. पूजा मे प्रतिदिन तेल अथवा घी के दीप की नई बाती जलाएं । दीप-आरती तीन बार धीमी गति से उतारें । दीप-आरती उतारते समय बाएं हाथ से घंटी बजाएं ।
१३. देवता को नैवेद्य अर्पित से पहले नैवेद्य ढककर रखें । नैवेद्य समर्पण में सर्वप्रथम इष्टदेवता से प्रार्थना कर देवता के समक्ष भूमि पर जल से चौकोर मंडल बनाएं तथा उस पर नैवेद्य की थाली रखें । नैवेद्य समर्पण में थाली के चारो ओर घडी के कांटे की दिशा में एक ही बार जल का मंडल बनाएं । नैवेद्य अर्पित करते समय ऐसा भाव रखें कि हमारे द्वारा अर्पित नैवेद्य देवता तक पहुंच रहा है तथा देवता उसे ग्रहण कर रहे हैं ।नैवेद्य दिखाने के उपरांत दीप-आरती और तत्पश्चात् कर्पूर-आरती करें ।
१४. चौदहवां उपचार :
देवता को मनःपूर्वक नमस्कार करना
१५. पंद्रहवां उपचार :
परिक्रमा करना नमस्कार के उपरांत देवता के चारो ओर परिक्रमा करें । परिक्रमा करने की सुविधा न हो, तो अपने स्थान पर ही खड़े होकर तीन बार खड़े खड़े घूमें ।
१६. सोलहवां उपचार :
मंत्रपुष्पांजलि परिक्रमा के उपरांत मंत्रपुष्प-उच्चारण कर, देवता को अक्षत अर्पित करें । तत्पश्चात पूजा में हमसे ज्ञात-अज्ञात चूकों तथा त्रुटियों के लिए अंत में देवतासे क्षमा मांगें और पूजा का समापन करें । अंत में विभूति लगाएं, और बैठकर तीन बार प्रणाम करें और प्रसाद ग्रहण करें ।