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‘ भविष्य झाँकने का एक प्रयास ’                                                                                      

  दान ( ? )

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 : रत्नोपचार : 

. भारत . अमेरिका. एशिया . यूरोप . अफ्रीका . आस्ट्रेलिया

हमारे जीवन में रत्नों का बेहद महत्व है। ये रत्न ही है जिन्हें ज्योतिषशास्त्र में काफी शक्तिशाली माना गया है। ज्योतिषशास्त्र ऐसा मानता है कि रत्न मुश्किल परेशानी को अपने प्रभाव से खत्म करने की क्षमता रखते हैं। रत्नों में ग्रहों की उर्जा को अवशोषित करने की अद्भुत क्षमता होती है।

                                                                                                                             रत्नों में विराजमान अलौकि गुणों के कारण रत्नों को ग्रहों का अंश भी माना गया है।रत्नों की दुनिया थोड़ा जादुई सी लगती है। ज्योतिष शास्त्र ऐसा मानता ही कि रत्न में करिश्माई शक्तियां होती हैं। रत्न अगर सही समय में और ग्रहों की सही स्थिति को देखकर धारण किए जाएं, तो इनका सकारात्मक प्रभाव प्राप्त होता है अन्यथा रत्न का विपरीत प्रभाव भी झेलना पड़ सकता हैं ।रत्न तो वैसे कई प्रकार के होते हैं। लेकिन प्रमुख नौ रत्न माणिक, मोती, मूंगा, गोमेद, पुखराज, नीलम, पन्ना एवं लहसुनिया और हीरा ही हैं ।

सूर्य ग्रह कष्ट निवारण हेतु :

सर्वप्रथम जातक को प्राण प्रतिष्ठा युक्त ८ रत्ती का या इससे अधिक का माणिक्य रत्न चांदी या सोने की धातु में रविवार को सूर्यास्त के पूर्व धारण करना चाहिये, वो अनामिका अंगुली या गले दोनों ही स्थान पर पहने जा सकते हैं ।

चन्द्र ग्रह कष्ट निवारण हेतु :

सर्वप्रथम जातक को प्राण प्रतिष्ठा युक्त १२ रत्ती का या इससे अधिक का मोती रत्न चांदी या सोने की धातु में सोमवार को सूर्यास्त के पूर्व धारण करना चाहिये, वो अनामिका या कनिष्ठिका अंगुली या गले दोनों ही स्थान पर पहने जा सकते हैं ।

मंगल ग्रह कष्ट निवारण हेतु :

सर्वप्रथम जातक को प्राण प्रतिष्ठा युक्त ९ रत्ती का या इससे अधिक का मूंगा रत्न चांदी या सोने की धातु में मंगलवार को सूर्यास्त के पूर्व धारण करना चाहिये, वो अनामिका अंगुली या गले दोनों ही स्थान पर पहने जा सकते हैं ।

राहू ग्रह कष्ट निवारण हेतु :

सर्वप्रथम जातक को प्राण प्रतिष्ठा युक्त ८ रत्ती का या इससे अधिक का गोमेद रत्न चांदी या सोने की धातु में शनिवार को सूर्यास्त के पूर्व धारण करना चाहिये, वो मध्यमा अंगुली या गले दोनों ही स्थान पर पहने जा सकते हैं ।

बृहस्पति ग्रह कष्ट निवारण हेतु :

सर्वप्रथम जातक को प्राण प्रतिष्ठा युक्त ९ रत्ती का या इससे अधिक का पुखराज रत्न चांदी या सोने की धातु में गुरुवार को सूर्यास्त के पूर्व धारण करना चाहिये, वो तर्जनी अंगुली या गले दोनों ही स्थान पर पहने जा सकते हैं ।

शनि ग्रह कष्ट निवारण हेतु :

सर्वप्रथम जातक को प्राण प्रतिष्ठा युक्त ८ रत्ती का या इससे अधिक का नीलम रत्न चांदी या सोने की धातु में शनिवार को सूर्यास्त के पूर्व धारण करना चाहिये, वो मध्यमा अंगुली या गले दोनों ही स्थान पर पहने जा सकते हैं ।

बुध ग्रह कष्ट निवारण हेतु :

सर्वप्रथम जातक को प्राण प्रतिष्ठा युक्त ६ रत्ती का या इससे अधिक पन्ना रत्न चांदी या सोने की धातु में बुधवार को सूर्यास्त के पूर्व धारण करना चाहिये, वो अनामिका अंगुली अथवा कनिष्ठिका अंगुली या गले दोनों ही स्थान पर पहने जा सकते हैं ।

केतु ग्रह कष्ट निवारण हेतु :

सर्वप्रथम जातक को प्राण प्रतिष्ठा युक्त ८ रत्ती या इससे अधिक का लहसुनिया रत्न चांदी या सोने की धातु में सोमवार को सूर्यास्त के पूर्व धारण करना चाहिये, वो अनामिका अथवा मध्यमा अंगुली या गले दोनों ही स्थान पर पहने जा सकते हैं ।

शुक्र ग्रह कष्ट निवारण हेतु :

सर्वप्रथम जातक को प्राण प्रतिष्ठा युक्त ७ रत्ती या इससे अधिक का हीरा रत्न चांदी या सोने की धातु में शुक्रवार को सूर्यास्त के पूर्व धारण करना चाहिये, वो अनामिका अंगुली या गले दोनों ही स्थान पर पहने जा सकते हैं ।

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