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‘ भविष्य झाँकने का एक प्रयास ’

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                                                                                  “ कृपया अपने जीवन मे सही मार्गदर्शन प्राप्त करने हेतु हस्तलिखित सम्पूर्ण जन्म कुंडली का निर्माण अवश्य करायेँ “

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 : मंत्रोपचार : 

. भारत . अमेरिका. एशिया . यूरोप . अफ्रीका . आस्ट्रेलिया

भारतीय संस्कृति में मंत्र जप की परंपरा पुरातन काल से ही रही है। भारतवर्ष में सभी धर्मो के लोग अपने अपने धर्म के अनुसार कोई न कोई प्रार्थना अथवा मन्त्र जप अवश्य करते हैं । मंत्र जप से आत्मा, देह शुद्ध होता है । इन मंत्र जाप से ही व्यक्ति अपनी कठिनाई और परेशानी से मुक्ति प्राप्त कर लेने में सक्षम हो पाता है । ये छोटे छोटे मंत्र अपने आप में असीम शक्ति का संचारण करने वाले होते हैं । योगी के शब्दों में “ मंत्र गूढ़ अर्थों ” का स्वरुप होते हैं । ये मंत्र ही प्राण ऊर्जा को जागृत करने का काम करता है । मंत्र जप करने से पूर्व साधक को मन एवं तन से स्वच्छ होना चाहिये । मंत्र साधना को विधिवत करना चाहिये जिससे पूर्ण लाभ प्राप्त किया जा सके । जाप करने वाले व्यक्ति को ऊन का, रेशम का, सूत अथवा कुशा निर्मित या मृगचर्म का इत्यादि का बना हुआ आसन पर बैठकर ही जप साधना करनी चाहिये । मंत्र जप पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ गुप्त रूप से करनी चाहिये ।

                                                                                           मंत्र जप तीन प्रकार से हो सकते हैं, प्रथम वाचिक जप, द्वितीय उपांशु जप एवं तृतीय मानसिक जप । मन्त्र जप से मन शांत होता है । मंत्र जप करते समय मंत्रों का उच्चारण सही तरह से करना चाहिये, तभी हमें इन मंत्रों का पूर्ण लाभ प्राप्त हो पाता है, और हम मंत्रों के प्रभाव को महसूस कर पाते हैं । ज्योतिष में सभी नौ ग्रह का अपना विशिष्ट महत्व होता है । सभी ग्रह अपनी दशाकाल में फल प्रदान करने की क्षमता रखते हैं । यदि ग्रह शुभ होकर पीड़ित है, तब उन्हें कई प्रकार से बली बनाया जा सकता है और यदि ग्रह कुंडली में अशुभ भाव का स्वामी है, तब भी उसका उपचार किया जा सकता है । ग्रह को शुभ अथवा बली बनाने के लिए कई प्रकार के उपाय किए जाते है । मंत्र जप करने में आपका थोड़ा सा समय लगता अवश्य है किन्तु, फल बहुत अच्छे और शुभ प्राप्त होते हैं । आइये जानते हैं किस ग्रह में कौन से मन्त्र जप करने चाहिये ।

 सूर्य ग्रह कष्ट निवारण हेतु :

 सूर्य के किसी भी मंत्र का जप व्यक्ति को अपनी सुविधानुसार करना चाहिये । सूर्य यश का कारक होता है । मान सम्मान में वृद्धि कराता है । अगर कुंडली में सूर्य शुभ होकर कमजोर है, तब इसके किसी भी एक मंत्र का जप करना चाहिये । मंत्र जप की संख्या ११,००० होनी चाहिये । शुक्ल पक्ष के रविवार से मंत्र जप प्रारंभ कर सकते हैं अपनी सुविधानुसार व्यक्ति अपने इन जापों को निर्धारित समय में पूरा कर सकता है । सूर्य के वैदिक मंत्र ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यण्च । हिरण्य़येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन ।। सूर्य नाम के मंत्र ऊँ घृणि सूर्याय नम: सूर्य के तांत्रोक्त मंत्र ऊँ घृणि: सूर्यादित्योम ऊँ घृणि: सूर्य आदित्य श्री ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय: नम: ऊँ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नम:

सूर्य मन्त्र अनुष्ठान (सवा लाख मन्त्र जाप) के लिए न्योछावर ( (. दान) ) पर क्लिक करें १११०००/रुपे- सूर्य मन्त्र अनुष्ठान न्योछावर ( (. दान) )

चन्द्र ग्रह कष्ट निवारण हेतु :

वैदिक ज्योतिष और पौराणिक शास्त्रों में बहुत से मंत्रो का वर्णन हमें मिलता है । जन्म कुंडली में यदि चन्द्रमा शुभ होकर निर्बल अवस्था में है, तब चंद्रमा के किसी भी एक मंत्र का जप शुक्ल पक्ष के सोमवार अथवा पूर्णमासी से शुरु करना चाहिए । चन्द्रमा के मंत्र का जप रात्रि समय में ही करना चाहिए । चन्द्र का वैदिक मंत्र ऊँ इमं देवा असपत्नं ग्वं सुवध्यं । महते क्षत्राय महते ज्यैश्ठाय महते जानराज्यायेन्दस्येन्द्रियाय इमममुध्य पुत्रममुध्यै पुत्रमस्यै विश वोsमी राज: सोमोsस्माकं ब्राह्माणाना ग्वं राजा ।। चन्द्र का नाम मंत्र ऊँ सों सोमाय नम: चन्द्र का तांत्रोक्त मंत्र ऊँ ऎं क्लीं सोमाय नम: । ऊँ श्रां श्रीं श्रौं चन्द्रमसे नम: । ऊँ श्रीं श्रीं चन्द्रमसे नम: ।

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मंगल ग्रह कष्ट निवारण हेतु :

मंगल के किसी भी मंत्र का जप व्यक्ति को अपनी सुविधानुसार करना चाहिये । मंगल पराक्रम का कारक होता है । अगर कुंडली में मंगल शुभ होकर कमजोर है, तब इसके किसी भी एक मंत्र का जप करना चाहिये । मंत्र जप की संख्या २१,००० होनी चाहिये । शुक्ल पक्ष के मंगलवार से मंत्र जप प्रारंभ कर सकते हैं अपनी सुविधानुसार व्यक्ति अपने इन जापों को निर्धारित समय में पूरा कर सकता है । मंगल का वैदिक मंत्र “ऊँ अग्निमूर्धादिव: ककुत्पति: पृथिव्यअयम। अपा रेता सिजिन्नवति ।” मंगल का नाम मंत्र ऊँ भौं भौमाय नम: ऊँ अं अंगारकाय नम: मंगल का तांत्रोक्त मंत्र ऊँ हां हंस: खं ख: ऊँ हूं श्रीं मंगलाय नम: ऊँ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:

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राहू ग्रह कष्ट निवारण हेतु :

राहु का अपना कोई भौतिक अस्तित्व नहीं होता है । यह एक छाया ग्रह है, लेकिन छाया ग्रह होते हुए भी कुण्डली पर अपना अत्यधिक प्रभाव बनाये रखता है । राहु सदा अशुभ प्रभाव नही देता है । हम इसे सदा अशुभ नहीं मान सकते है । इसकी दशाकाल में व्यक्ति की बुद्धि कुछ भ्रमित सी रहती है । व्यक्ति कई ऎसे निर्णय ले लेता है जिसके लिए उसे भविष्य में पछताना पड़ सकता है । सही और गलत में अंतर करना मुश्किल हो जाता है । राहू के किसी भी मंत्र का जप व्यक्ति को अपनी सुविधानुसार करना चाहिये । राहू अकस्मात फल देने का कारक होता है । अगर कुंडली में राहू शुभ होकर कमजोर है, तब इसके किसी भी एक मंत्र का जप करना चाहिये । मंत्र जप की संख्या ११,००० होनी चाहिये । शुक्ल पक्ष के शनिवार से मंत्र जप प्रारंभ कर सकते हैं अपनी सुविधानुसार व्यक्ति अपने इन जापों को निर्धारित समय में पूरा कर सकता है । राहु का वैदिक मंत्र ऊँ कयानश्चित्र आभुवदूतीसदा वृध: सखा । कयाशश्चिष्ठया वृता । राहू का नाम मंत्र ऊँ रां राहवे नम: राहु का तांत्रोक्त मंत्र ऊँ ऎं ह्रीं राहवे नम: ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम: ऊँ ह्रीं ह्रीं राहवे नम:

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बृहस्पति ग्रह कष्ट निवारण हेतु :

गुरु के किसी भी मंत्र का जप व्यक्ति को अपनी सुविधानुसार करना चाहिये । गुरु ग्रह ज्ञान, संतान तथा धन के नैसर्गिक कारक माने जाते हैं । मान सम्मान में वृद्धि कराता है । अगर कुंडली में गुरु शुभ होकर कमजोर है, तब इसके किसी भी एक मंत्र का जप करना चाहिये । मंत्र जप की संख्या २१,००० होनी चाहिये । शुक्ल पक्ष के गुरुवार से मंत्र जप प्रारंभ कर सकते हैं अपनी सुविधानुसार व्यक्ति अपने इन जापों को निर्धारित समय में पूरा कर सकता है । गुरु का वैदिक मंत्र ऊँ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेधु । यद्दीदयच्छवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविण देहि चित्रम । । गुरु का नाममंत्र ऊँ बृं बृहस्पतये नम: गुरु का तांत्रोक्त मंत्र ऊँ ऎं क्रीं बृहस्पतये नम: । ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवे नम: । ऊँ श्रीं श्रीं गुरवे नम: ।

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शनि ग्रह कष्ट निवारण हेतु :

शनि के किसी भी मंत्र का जप व्यक्ति को अपनी सुविधानुसार करना चाहिये । शनि ग्रह ज्ञान एवं न्याय के नैसर्गिक कारक माने जाते हैं । प्रसिद्धि में वृद्धि कराता है । अगर कुंडली में शनि शुभ होकर कमजोर है, तब इसके किसी भी एक मंत्र का जप करना चाहिये । मंत्र जप की संख्या ५१,००० होनी चाहिये । शुक्ल पक्ष के शनिवार से मंत्र जप प्रारंभ कर सकते हैं अपनी सुविधानुसार व्यक्ति अपने इन जापों को निर्धारित समय में पूरा कर सकता है । शनि का वैदिक मंत्र “ऊँ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये । शं योरभि स्रवन्तु न:” शनि का नाम मंत्र “ऊँ शं शनैश्चराय नम:” शनि का तांत्रोक्त मंत्र “ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:”

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बुध ग्रह कष्ट निवारण हेतु :

बुध के किसी भी मंत्र का जप व्यक्ति को अपनी सुविधानुसार करना चाहिये । बुध ग्रह मस्तिष्क एवं वाणी का नैसर्गिक कारक माने जाते हैं । प्रसिद्धि में वृद्धि कराता है । अगर कुंडली में बुध शुभ होकर कमजोर है, तब इसके किसी भी एक मंत्र का जप करना चाहिये । मंत्र जप की संख्या ११,००० होनी चाहिये । शुक्ल पक्ष के बुधवार से मंत्र जप प्रारंभ कर सकते हैं अपनी सुविधानुसार व्यक्ति अपने इन जापों को निर्धारित समय में पूरा कर सकता है । बुध का वैदिक मंत्र ऊँ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रतिजागृहि त्वमिष्टापूर्ते स सृजेथामयं च । अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन्विश्वे देवा यजमानश्च सीदत ।। बुध का नाम मंत्र ऊँ बुं बुधाय नम: बुध का तांत्रोक्त मंत्र ऊँ ऎं स्त्रीं श्रीं बुधाय नम: ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम: ऊँ स्त्रीं स्त्रीं बुधाय नम:

बुध मन्त्र अनुष्ठान (सवा लाख मन्त्र जाप) के लिए न्योछावर ( (. दान) ) पर क्लिक करें १११०००/रुपे- बुध मन्त्र अनुष्ठान न्योछावर ( (. दान) )

केतु ग्रह कष्ट निवारण हेतु :

केतु की दशा में अकसर लोगों का मन विचलित रहते देखा गया है । बिना कारण की परेशानियाँ जीवन में आ जाती हैं । केतु के किसी भी मंत्र का जप व्यक्ति को अपनी सुविधानुसार करना चाहिये । केतु ग्रह आकस्मिक शुभ अशुभ का नैसर्गिक कारक माने जाते हैं । अगर कुंडली में केतु शुभ होकर कमजोर है, तब इसके किसी भी एक मंत्र का जप करना चाहिये । मंत्र जप की संख्या २१,००० होनी चाहिये । शुक्ल पक्ष के मंगलवार से सायंकाल से मंत्र जप प्रारंभ कर सकते हैं अपनी सुविधानुसार व्यक्ति अपने इन जापों को निर्धारित समय में पूरा कर सकता है । केतु का वैदिक मंत्र “ऊँ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेश से। सुमुषद्भिरजायथा:” केतु नाम का मंत्र – “ऊँ कें केतवे नम:” केतु का तांत्रोक्त मंत्र “ऊँ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम:” “ह्रीं केतवे नम:” “कें केतवे नम:”

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शुक्र ग्रह कष्ट निवारण हेतु :

शुक्र के किसी भी मंत्र का जप व्यक्ति को अपनी सुविधानुसार करना चाहिये । शुक्र सुख वैभव का कारक होता है । अगर कुंडली में शुक्र शुभ होकर कमजोर है, तब इसके किसी भी एक मंत्र का जप करना चाहिये । मंत्र जप की संख्या ११,००० होनी चाहिये । शुक्ल पक्ष के शुक्रवार दिन से प्रातः काल की बेला से मंत्र जप प्रारंभ कर सकते हैं अपनी सुविधानुसार व्यक्ति अपने इन जापों को निर्धारित समय में पूरा कर सकता है । शुक्र का वैदिक मंत्र ऊँ अन्नात्परिस्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपिबत क्षत्रं पय: सेमं प्रजापति: । ऋतेन सत्यमिन्दियं विपान ग्वं, शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोय्मृतं मधु । शुक्र नाम का मंत्र ऊँ शुं शुक्राय नम: शुक्र का तांत्रोक्त मंत्र ऊँ ह्रीं श्रीं शुक्राय नम: ऊँ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम: ऊँ वस्त्रं मे देहि शुक्राय स्वाहा

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मारकेश से कष्ट निवारण हेतु :

शिव आराधना से लाभ मिलता है, शिवजलाभिषेख करें। —मारक ग्रहों की दशा मे उनके उपाय करना चाहिए. —महामृत्युंजय मंत्र का जप करना चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र इस प्रकार है:– ॐ हौं ॐ जूं ॐ स: भूर्भुव: स्वःत्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम्। उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतातॐ भूर्भुव: स्वः ॐ जूं स: हौं ॐ।। —-इस विषय में राम रक्षा स्त्रोत, महामृत्युंजय मन्त्र, लग्नेश और राशीश के मन्त्रों का अनुष्ठान और गायत्री मन्त्रों द्वारा इनमे कुछ वृद्धि की जा ... साथ ही साथ एक मुखी रुद्र्क्ष भी गले में धारण करें ।

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                                                                                                                                                    प्रायः मन्त्र अनुष्ठान की प्रक्रिया जातक को किसी सद्गुरु अथवा सिद्ध व्यक्ति के मार्गदर्शन में ही करनी चाहिये या अनुष्ठान के पूर्ण लाभ हेतु जातक स्वयं संकल्प लेकर सद्गुरु अथवा सिद्ध व्यक्ति को मन्त्र जप अनुष्ठान की प्रकिया दे देना चाहिये क्योंकि सामान्य व्यक्ति के लिए मन्त्र अनुष्ठान की प्रक्रिया थोड़ा जटिल अवश्य प्रतीत होती है

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