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‘ भविष्य झाँकने का एक प्रयास ’                                                                                      

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 : कृष्णजन्माष्टमी : 

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हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान विष्णु जी के पूर्णावतार को ही भगवान श्रीकृष्ण के रूप में माना जाता है और उनकी पूजा होती हैं । मान्यता है कि, भगवान कृष्ण सोलह कलाओं में पारंगत थे, इसीलिए उन्हें पूर्णावतार भी कहा जाता है । भविष्य पुराण के अनुसार भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था ।

भगवान कृष्ण बचपन से ही नटखट और शरारती थे। माखन उन्हें बेहद प्रिय था, जिसे वह मटकी से चुरा कर खाते थे । भगवान कृष्ण की इसी लीला को उनके जन्मोत्सव पर जगह जगह दही हांड़ी के रूप में रचा जाता है । देश के कई भागों में इस दिन मटकी फोड़ने का कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता है । जन्माष्टमी पर्व की पहचान बन चुकी दही-हांडी या मटकी फोड़ने की रस्म भक्तों के दिलों में भगवान श्रीकृष्ण की यादों को ताजा कर देती हैं ।

जन्माष्टमी पर भक्त उपवास रखते हैं और रात्रि के दस बजे स्नान आदि से पवित्र हो कर घर के पवित्र कमरे में, पूर्व दिशा की ओर आम लकड़ी के सिंहासन पर, लाल वस्त्र बिछाकर, उस पर कृष्ण की तस्वीर स्थापित कर, तत्पश्चात शास्त्रानुसार उन्हें विधि पूर्वक नंदलाल की पूजा करते हैं ।

मान्यता है कि इस दिन जो श्रद्धा पूर्वक जन्माष्टमी के महात्म्य को पढ़ता और सुनता है, इस लोक में सारे सुखों को भोगकर वैकुण्ठ धाम को जाता है ।

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