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‘ भविष्य झाँकने का एक प्रयास ’                                                                                      

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:  : करवाचौथ : :

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करवा चौथ :

' करवा ' का अर्थ मिटटी से बना बर्तन जिसमे गेहूं रखी जाती है और ' चौथ ' का अर्थ होता है चौथा दिन । करवा चौथ से कुछ दिन पहले औरतें गोला-अकार मिटटी के बर्तनों को खरीदती है और उनके विभिन्न प्रकार के रंगों से सजाती हैं। इसके इलावा औरतें इन बर्तनों में चूड़िया, परांदे, मिठाई, कपडा, और सजावट का सामान रखती हैं और आपस में मिलकर एक दुसरे को इसे देती हैं ।

इसके पश्चात् कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ मनाया जाता है । वामन पुराण मे करवा चौथ व्रत का वर्णन किया गया है । करवा चौथ को कई जगह करक चतुर्थी के नाम से भी पुकारा जाता है । यह पर्व सुहागिन स्त्रियों के लिए विशेष माना जाता है । इस दिन विवाहित स्त्रियां पति के दीर्घायु और सुखमय दांपत्य जीवन के लिए निर्जला यानि बिना अन्न और जल का व्रत रखती हैं ।

इसके बाद शाम के समय स्त्रियां चन्द्रमा को अर्घ्य देती है और फिर उसे छलनी से देखती हैं । उसके बाद वे अपने पति के हाथ से पानी ग्रहण कर इस उपवास को पूर्ण करती है ।

ज्यादातर महिलाओं अपने उपवास को खोलने के लिए पहले एक छलनी के माध्यम से चाँद को देखती है और फिर तुरंत अपने पति को देखती है । ऐसा इसलिए है क्योंकि धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस दिन चंद्रमा को भगवान शिव या भगवान गणेश के प्रतिनिधि माना जाता है चूंकि, महिलाएं दुल्हन के रूप में सजी होती हैं, और नए दुल्हनों को सीधे परिवार के बड़ों की तरफ देखने की मनाही होती है, इसलिए छलनी का उपयोग किया जाता है छलनी घूंघट के तौर पर देखा जाता है ।

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