‘ भविष्य झाँकने का एक प्रयास ’
“ कृपया अपने जीवन मे सही मार्गदर्शन प्राप्त करने हेतु हस्तलिखित सम्पूर्ण जन्म कुंडली का निर्माण अवश्य करायेँ “
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गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुसाक्षात परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को ही गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है. अपितु भारतवर्ष में कई विद्वान गुरु हुए हैं ।
सिख धर्म केवल अपने दस गुरुओं की वाणी को ही जीवन का वास्तविक सत्य मानता है ।‘गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पांव, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए'।।
गुरु का आशीर्वाद सबके लिए कल्याणकारी व ज्ञानवर्द्धक ही होता है, इसलिए इस दिन गुरु पूजन के उपरांत गुरु का आशीर्वाद लेना चाहिए । सिख धर्म में इस पर्व का महत्व अधिक इस कारण है कि सिख धर्म केवल अपने दस गुरुओं की वाणी को ही जीवन का वास्तविक सत्य मानता है ।‘गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पांव, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए'।।
इस दिन गुरु पूजा का विधान है । गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती है ।इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान आलोकित करते हैं । गुरुचरण में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।
गुरु पूर्णिमा का यह दिन महाभारत के रचयिता वेद व्यास का जन्मदिन के रूप में भी मनाया जाता है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे और उन्होंने चारों वेदों की भी रचना की थी। इस कारण उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे।
समर्पित संरक्षक गुरु एक योग्य शिष्य की प्रतिभा को तराशता है। अध्यात्म के मार्ग में एक खोजी के मस्तिष्क का अज्ञान गुरु का प्रबोध दूर करता है। गुरु के लिये गोविंद जैसी श्रद्धा होती है। ब्रह्म-विद् और ब्रह्मज्ञानी तथा ईश्वरीय साक्षात्कार में स्थित गुरु जो सूक्ष्मतम आध्यात्मिक संकल्पनाओं को प्रदान करने मे समर्थ हो, उसके मार्गदर्शन के बिना आध्यात्मिक विकास संभव नहीं है। गुरु के प्रति संपूर्ण समर्पण ही एक शिष्य की सर्व प्रथम योग्यता है
गुरु तत्व की प्रशंसा तो सभी शास्त्रों ने की है । ईश्वर के अस्तित्व में मतभेद हो सकता है, किन्तु गुरु के लिए कोई मतभेद आज तक उत्पन्न नहीं हुआ है । गुरु की महत्ता को सभी धर्मों और सम्प्रदायों ने माना है। प्रत्येक गुरु ने दूसरे गुरुओं को आदर-प्रशंसा एवं पूजा सहित पूर्ण सम्मान दिया है । भारत के बहुत से संप्रदाय तो केवल गुरुवाणी के आधार पर ही कायम हैं। भारतीय संस्कृति के वाहक शास्त्रों में, गु का अर्थ है- मूल अज्ञान और रु का का अर्थ है- निरोधक माना जाता है । गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञानता को दूर कर देता है । अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरु’ कहा जाता है। गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी है । बल्कि सद्गुरुकी कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है ।