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‘ भविष्य झाँकने का एक प्रयास ’                                                                                      

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 : गणेशचतुर्थी : 

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हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी मनाया जाता है । गणेश पुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार इसी दिन समस्त विघ्न बाधाओं को दूर करने वाले, कृपा के सागर तथा भगवान शंकर और माता पार्वती के पुत्र श्री गणेश जी का जन्म हुआ था ।

गणेश चतुर्थी के दिन, गणेश की मूर्तियों को बहुत उत्साह के साथ घर लाया जाता है और दस दिनों के लिए इनको घर में रख कर पूजा की जाती है । कई जगाहों पर गणेश की विशाल मूर्तियों के साथ सुंदर पंडाल भी बनाये जाते है । प्रत्येक गणपति पूजा मंडल में पुजारीपंडित के द्वारा मुख्य चार प्रकार से पवित्र अनुष्ठानों को किया जाता हैं पहला चरण में पवित्र मन्त्रों के उच्चारण से मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है ।

इस अनुष्ठान के पश्चात् भगवान गणेश को सोलह तरीके से श्रद्धांजलि दी जाती हैं । तत्पश्चात उत्तर पूजा की जाती है, जिससे मूर्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया सके । और अंत में आखिरी अनुष्ठान गणपति विसर्जन का आता है ।

इस महापर्व पर लोग प्रातः काल उठकर स्नान आदि से निवृत होकर सोने, चांदी, तांबे अथवा मिट्टी के गणेश जी की प्रतिमा को स्थापित कर षोडशोपचार विधि से उनका पूजन करते हैं । पूजन के पश्चात् नीची नज़र से चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मणों को दक्षिणा देते हैं । इस पूजा में गणपति को ग्यारह लड्डु एवं इक्कीस मोदक का भोग लगाया जाता है । मान्यता के अनुसार इस दिन चंद्रमा की तरफ नही देखा जाता है । भगवान् गणपति की पूजा करने से सभी मनोकामनायें पूर्ण होती है ।

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