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‘ भविष्य झाँकने का एक प्रयास ’                                                                                      

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ज्योतिषशाष्त्र एवं आयुर्वेदशाष्त्र का पुरातन काल से ही बहुत पुराना और गहरा सम्बन्ध रहा है । हर ग्रह का सम्बन्ध कुछ विशेष औषधियों से होता ही है और जब कोई ग्रह निर्बल होकर अशुभ फल देने लगता है तो व्यक्ति को उस ग्रह से सम्बन्धित औषधियों के मिश्रण से स्नान करना लाभकर होता है । प्राचीन काल में हमारे ऋषि-मुनियों ने ग्रहों की पीड़ा की शान्ति के लिए व्यक्ति को औषधि स्नान कराया करते थे । जिससे मनुष्य का ग्रहो के दुष्प्रभावी व्यवहार से निकल कर स्वस्थ्य एंव सुखी जीवन गुजारना संभव हो पाता था । यदि ज्योतिष के द्वारा विभिन्न समस्याओं का पता लगाया जा सकता है तो आयुर्वेद के द्वारा उन समस्याओं का उचित ढंग से निराकरण भी किया जा सकता है ।

ज्योतिष के सभी उपाय तन एवं मन को स्वस्थ्य रखने के लिए बताये गये हैं । क्योंकि शारीरिक एंव मानसिक रूप से स्वस्थ्य व्यक्ति ही, अपने कर्मो के माध्यम से भाग्य पक्ष को मजबूत कर सुख एंव समृद्धि दायक जीवन व्यतीत कर सकने में संभव हो पाता है । अत एव औषधि स्नान में विभिन्न प्रकार की बूटियों को अपने स्नान के जल में मिलाकर स्नान करने का विधान है । सर्वप्रथम बतायी गयी जड़ी बूटियों को बाजार से प्राप्त करके इसे हल्का से कूट ले औरं एक मिटटी के पात्र में डालकर इसमें जल भर सामान्य ताप पर या छांव में रख दें । अब प्रतिदिन इसमें से थोड़ी मात्रा में जल निकाल कर छान लें तत्पश्चात इस जल को अपने स्नान जल में मिला कर स्नान करे । औषधि वाले पात्र में उतना जल तुरन्त डाल दें जितना आप निकाले हैं । इस प्रकार बनाये गये औषधि जल को आप चालीस दिन तक प्रयोग में ला सकते हैं । इसके पश्चात पात्र को खाली करके पुनः जड़ी बूटियों का मिश्रण कर जल तैयार कर लें । आप समस्या से मुक्त होने तक औषधि स्नान करते हैं तो लाभ अवश्य मिलेगा ।

सूर्य ग्रह कष्ट निवारण हेतु औषधि स्नान :

केसर, कमलगटटा, इलायची, जटामासी, खस, देवदारु, मेनसिल और पाटले इत्यादि, इन सभी बतायी गयी जड़ी बूटियों को बाजार से प्राप्त करके, सर्वप्रथम इसे हल्का से कूट ले, औरं इन सभी मिश्रण को शनिवार की सायं, एक मिटटी के पात्र में डालकर इसमें जल भर कर, सामान्य ताप पर या छांव में रख दें । रविवार को प्रातः काल सारी सामग्री को हाथ से मसल कर मिला दें । एक घंटे के बाद इसमें लगभग एक सामान्य गिलास जितना जल निकाल कर स्नान वाले जल में मिला दें तथा हांड़ी में पुनः एक गिलास शुद्ध जल मिला दें । हांडी वाले जल का प्रयोग आप लगभग तीन बार मतलब तीन दिन कर सकते हैं । तीसरे दिन की सायं को पुनः यह औषधि जल तैयार कर लें । प्रतिदिन एक गिलास औषधि युक्त जल निकाल कर पुनः एक गिलास शुद्ध जल मिला दें ।

चन्द्र ग्रह कष्ट निवारण हेतु औषधि स्नान :

बेलगिरी गजमंद और पंचगव्य इत्यादि, इन सभी बतायी गयी जड़ी बूटियों को बाजार से प्राप्त करके, सर्वप्रथम इसे हल्का से कूट ले, औरं इन सभी मिश्रण को रविवार की सायं, एक मिटटी के पात्र में डालकर इसमें जल भर कर, सामान्य ताप पर या छांव में रख दें । सोमवार को प्रातः काल सारी सामग्री को हाथ से मसल कर मिला दें । एक घंटे के बाद इसमें लगभग एक सामान्य गिलास जितना जल निकाल कर स्नान वाले जल में मिला दें तथा हांड़ी में पुनः एक गिलास शुद्ध जल मिला दें । हांडी वाले जल का प्रयोग आप लगभग तीन बार मतलब तीन दिन कर सकते हैं । तीसरे दिन की सायं को पुनः यह औषधि जल तैयार कर लें । प्रतिदिन एक गिलास औषधि युक्त जल निकाल कर पुनः एक गिलास शुद्ध जल मिला दें ।

मंगल ग्रह कष्ट निवारण हेतु औषधि स्नान :

जटामासी सुगंधबाला नागकेशर लाल चन्दन बेलगिरी मूल बेंगन खरेटी और प्रियंगु इत्यादि, इन सभी बतायी गयी जड़ी बूटियों को बाजार से प्राप्त करके, सर्वप्रथम इसे हल्का से कूट ले, औरं इन सभी मिश्रण को सोमवार की सायं, एक मिटटी के पात्र में डालकर इसमें जल भर कर, सामान्य ताप पर या छांव में रख दें । मंगलवार को प्रातः काल सारी सामग्री को हाथ से मसल कर मिला दें । एक घंटे के बाद इसमें लगभग एक सामान्य गिलास जितना जल निकाल कर स्नान वाले जल में मिला दें तथा हांड़ी में पुनः एक गिलास शुद्ध जल मिला दें । हांडी वाले जल का प्रयोग आप लगभग तीन बार मतलब तीन दिन कर सकते हैं । तीसरे दिन की सायं को पुनः यह औषधि जल तैयार कर लें । प्रतिदिन एक गिलास औषधि युक्त जल निकाल कर पुनः एक गिलास शुद्ध जल मिला दें ।

राहू ग्रह कष्ट निवारण हेतु औषधि स्नान :

नागरमोथा, कस्तूरी, दूर्वा और गजमद इत्यादि इन सभी बतायी गयी जड़ी बूटियों को बाजार से प्राप्त करके, सर्वप्रथम इसे हल्का से कूट ले, औरं इन सभी मिश्रण को शुक्रवार की सायं, एक मिटटी के पात्र में डालकर इसमें जल भर कर, सामान्य ताप पर या छांव में रख दें । शनिवार को प्रातः काल सारी सामग्री को हाथ से मसल कर मिला दें । एक घंटे के बाद इसमें लगभग एक सामान्य गिलास जितना जल निकाल कर स्नान वाले जल में मिला दें तथा हांड़ी में पुनः एक गिलास शुद्ध जल मिला दें । हांडी वाले जल का प्रयोग आप लगभग तीन बार मतलब तीन दिन कर सकते हैं । तीसरे दिन की सायं को पुनः यह औषधि जल तैयार कर लें । प्रतिदिन एक गिलास औषधि युक्त जल निकाल कर पुनः एक गिलास शुद्ध जल मिला दें ।

बृहस्पति ग्रह कष्ट निवारण हेतु औषधि स्नान :

जेठी मालती पुष्प जूही और पीली सरसों इत्यादि, इन सभी बतायी गयी जड़ी बूटियों को बाजार से प्राप्त करके, सर्वप्रथम इसे हल्का से कूट ले, औरं इन सभी मिश्रण को बुधवार की सायं, एक मिटटी के पात्र में डालकर इसमें जल भर कर, सामान्य ताप पर या छांव में रख दें । बृहस्पतिवार को प्रातः काल सारी सामग्री को हाथ से मसल कर मिला दें । एक घंटे के बाद इसमें लगभग एक सामान्य गिलास जितना जल निकाल कर स्नान वाले जल में मिला दें तथा हांड़ी में पुनः एक गिलास शुद्ध जल मिला दें । हांडी वाले जल का प्रयोग आप लगभग तीन बार मतलब तीन दिन कर सकते हैं । तीसरे दिन की सायं को पुनः यह औषधि जल तैयार कर लें । प्रतिदिन एक गिलास औषधि युक्त जल निकाल कर पुनः एक गिलास शुद्ध जल मिला दें ।

शनि ग्रह कष्ट निवारण हेतु औषधि स्नान :

खरेटी,सौंफ,कालासुरमा और कालातिल इत्यादि, इन सभी बतायी गयी जड़ी बूटियों को बाजार से प्राप्त करके, सर्वप्रथम इसे हल्का से कूट ले, औरं इन सभी मिश्रण को शुक्रवार की सायं, एक मिटटी के पात्र में डालकर इसमें जल भर कर, सामान्य ताप पर या छांव में रख दें । शनिवार को प्रातः काल सारी सामग्री को हाथ से मसल कर मिला दें । एक घंटे के बाद इसमें लगभग एक सामान्य गिलास जितना जल निकाल कर स्नान वाले जल में मिला दें तथा हांड़ी में पुनः एक गिलास शुद्ध जल मिला दें । हांडी वाले जल का प्रयोग आप लगभग तीन बार मतलब तीन दिन कर सकते हैं । तीसरे दिन की सायं को पुनः यह औषधि जल तैयार कर लें । प्रतिदिन एक गिलास औषधि युक्त जल निकाल कर पुनः एक गिलास शुद्ध जल मिला दें ।

बुध ग्रह कष्ट निवारण हेतु औषधि स्नान :

नागकेशर मोती मुलेठी पंचगव्य मूल चावल पोकर गोरोचन और मेनफले इत्यादि, इन सभी बतायी गयी जड़ी बूटियों को बाजार से प्राप्त करके, सर्वप्रथम इसे हल्का से कूट ले, औरं इन सभी मिश्रण को मंगलवार की सायं, एक मिटटी के पात्र में डालकर इसमें जल भर कर, सामान्य ताप पर या छांव में रख दें । बुधवार को प्रातः काल सारी सामग्री को हाथ से मसल कर मिला दें । एक घंटे के बाद इसमें लगभग एक सामान्य गिलास जितना जल निकाल कर स्नान वाले जल में मिला दें तथा हांड़ी में पुनः एक गिलास शुद्ध जल मिला दें । हांडी वाले जल का प्रयोग आप लगभग तीन बार मतलब तीन दिन कर सकते हैं । तीसरे दिन की सायं को पुनः यह औषधि जल तैयार कर लें । प्रतिदिन एक गिलास औषधि युक्त जल निकाल कर पुनः एक गिलास शुद्ध जल मिला दें ।

केतु ग्रह कष्ट निवारण हेतु औषधि स्नान :

कस्तूरी, नागरमोथा, अनार, गजमद, सुगंधबाला,रतनजोत और लाल चन्दन इत्यादि, इन सभी बतायी गयी जड़ी बूटियों को बाजार से प्राप्त करके, सर्वप्रथम इसे हल्का से कूट ले, औरं इन सभी मिश्रण को सोमवार की सायं, एक मिटटी के पात्र में डालकर इसमें जल भर कर, सामान्य ताप पर या छांव में रख दें । मंगलवार को प्रातः काल सारी सामग्री को हाथ से मसल कर मिला दें । एक घंटे के बाद इसमें लगभग एक सामान्य गिलास जितना जल निकाल कर स्नान वाले जल में मिला दें तथा हांड़ी में पुनः एक गिलास शुद्ध जल मिला दें । हांडी वाले जल का प्रयोग आप लगभग तीन बार मतलब तीन दिन कर सकते हैं । तीसरे दिन की सायं को पुनः यह औषधि जल तैयार कर लें । प्रतिदिन एक गिलास औषधि युक्त जल निकाल कर पुनः एक गिलास शुद्ध जल मिला दें ।

शुक्र ग्रह कष्ट निवारण हेतु औषधि स्नान :

पोकरमूल , सफ़ेदकमल, इलायची,मेनसिल और केसर इत्यादि, इन सभी बतायी गयी जड़ी बूटियों को बाजार से प्राप्त करके, सर्वप्रथम इसे हल्का से कूट ले, औरं इन सभी मिश्रण को गुरुवार की सायं, एक मिटटी के पात्र में डालकर इसमें जल भर कर, सामान्य ताप पर या छांव में रख दें । शुक्रवार को प्रातः काल सारी सामग्री को हाथ से मसल कर मिला दें । एक घंटे के बाद इसमें लगभग एक सामान्य गिलास जितना जल निकाल कर स्नान वाले जल में मिला दें तथा हांड़ी में पुनः एक गिलास शुद्ध जल मिला दें । हांडी वाले जल का प्रयोग आप लगभग तीन बार मतलब तीन दिन कर सकते हैं । तीसरे दिन की सायं को पुनः यह औषधि जल तैयार कर लें । प्रतिदिन एक गिलास औषधि युक्त जल निकाल कर पुनः एक गिलास शुद्ध जल मिला दें ।

नव ग्रह कष्ट निवारण हेतु औषधि स्नान :

यह स्नान शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से किया जाता है । 100-100 ग्राम प्रत्येक सामग्री चावल, नागरमोथा, सूखा आंवला, सरसों तथा दूब इसके अतिरिक्त 51 तुलसी के पत्ते, 21 पत्ते बेलपत्र, 10 ग्राम पिसी हल्दी, 21 हरी इलायची, थोड़ा गोमूत्र, 10 ग्राम लाल चंदन, 10 ग्राम गोरोचन, 50 ग्राम काले तिल, 5 ग्राम लौंग, 10 ग्राम गुग्गुल और 5 ग्राम हींग इत्यादि इन सभी बतायी गयी जड़ी बूटियों को बाजार से प्राप्त करके, सर्वप्रथम इसे हल्का से कूट ले, औरं इन सभी मिश्रण को रविवार की रात्रि में किसी मिट्टी की हांडी में सारी सामग्री को शुद्ध जल में भिगो दें ।

                                                                                                                                      सोमवार को प्रातः काल सारी सामग्री को हाथ से मसल कर मिला दें। एक घंटे के बाद इसमें लगभग एक सामान्य माप के गिलास जितना जल निकाल कर स्नान वाले जल में मिला दें तथा हांड़ी में पुनः एक गिलास शुद्ध जल मिला दंे। हांडी वाले जल का प्रयोग आप लगभग तीन बार कर सकते हैं। तीसरे दिन की रात को पुनः यह औषधि जल तैयार कर लें । प्रतिदिन एक गिलास औषधि युक्त जल निकाल कर पुनः एक गिलास शुद्ध जल मिला दें । अब आप इस जल से नवग्रह का स्मरण कर स्नान करें । आपको लगातार 43 दिन तक स्नान करना है । इसके बाद यदि हांडी में कोई सामग्री बचे, तो उसे किसी भी वृक्ष की जड़ में डाल दें । इस प्रकार औषधि स्नान से व्यक्ति के नवग्रह कष्ट से मुक्ति मिलना संभव हो पाता है और नवग्रहों का शुभ फल प्राप्त होता है।

ग्रह दोष निवारण तंत्र साधना ग्रह जनित पीड़ा के निवारण एवं सर्व ग्रहों की शांति के लिए हमारे शास्त्रों में सर्वग्रह निवारण तंत्र साधना का भी विधान हैं।

विधि: 

 सबसे पहले आक, धतूरा, चिरचिरा (चिरचिरा को अपामार्ग, लटजीरा, उन्दाकाता, औंगा नामों से भी जाना जाता है), दूध, बरगद, पीपल इन छः की जड़ें; शमी (शीशम), आम, गूलर इन तीन के पत्ते, एक मिट्टी के नए पात्र (कलश) में रखकर गाय का दूध, घी, मट्ठा (छाछ) और गोमूत्र डालें। फिर चावल, चना, मूंग, गेहूं, काले एवं सफेद तिल, सफेद सरसों, लाल एवं सफेद चंदन का टुकड़ा (पीसकर नहीं), शहद डालकर मिट्टी के पात्र (कलश) को मिट्टी के ही ढक्कन से ढक कर, शनिवार की संध्या-काल में पीपल वृक्ष की जड़ के पास लकड़ी या हाथ से गड्ढा खोदकर पृथ्वी के एक फुट नीचे गाड़ दें।

                                                                                                                                                                                                                फिर उसी पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर गाय के घृत का एक दीपक एवं अगरबत्ती जलाकर नीचे लिखे मंत्र का केवल 108 बार (एक माला) जप करें। अमुक के स्थान पर ग्रह पीड़ित व्यक्ति का नाम लें या फिर अपना नाम लें (यदि आप ग्रह पीड़ित है तो)। मंत्र: ऊँ नमो भास्कराय (अमुक) सर्व ग्रहणां पीड़ा नाश कुरू-कुरू स्वाहा। इस क्रिया को करते समय निम्नलिखित बातों का अवश्य ध्यान रखें। इस क्रिया को केवल शनिवार के दिन संध्या काल में ही करें। 

                                                                                                                                                        वृक्ष की जड़ों को इक्ट्ठा करते समय जड़ें केवल हाथ से ही तोड़ें या किसी अन्य व्यक्ति से भी तुड़वाकर मंगा सकते हैं।  पृथ्वी पर पड़े हुए कटे-फटे पत्ते न लें।  संपूर्ण क्रिया को गोपनीय रखें।  इस क्रिया से समस्त ग्रहों का उपद्रव नष्ट हो जाता है, महादरिद्रता का नाश होता है, रोग, कष्ट- असफलताएं भाग जाती हैं तथा जीवन भर व्यक्ति को ग्रह पीड़ा का भय नहीं रहता।

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