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‘ भविष्य झाँकने का एक प्रयास ’                                                                                      

  दान ( ? )

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 : अक्षय तृतीया : 

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भविष्य पुराण के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया पर्व मनाया जाता है । अक्षय का शाब्दिक अर्थ कभी भी नष्ट न होने वाला है । वैशाख महीने की तृतीया सभी कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती है । अक्षय तृतीया के दिन किसी नए कार्य की शुरूआत करना अच्छा माना जाता है ।

भविष्यपुराण के अनुसार वैशाख पक्ष की तृतीया के दिन ही सतयुग तथा त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी। भगवान विष्णु ने अक्षय तृतीया तिथि को हयग्रीव तथा परशुराम के रूप में अवतार लिया था । इसी तिथि से हिन्दू तीर्थ स्थल बद्रीनाथ के दरवाजे खोले जाते हैं । वृन्दावन के बांके बिहारी मंदिर में चरण दर्शन, अक्षय तृतीया के दिन ही किए जाते हैं । ब्रह्मा पुत्र अक्षय कुमार का जन्म भी इसी दिन हुआ था ।

पद्म पुराण के अनुसार, अक्षय तृतीया के दोपहर का समय सबसे शुभ माना जाता है । इसी दिन महाभारत युद्ध की समाप्ति तथा द्वापर युग प्रारम्भ हुआ था ।

भविष्य पुराण के अनुसार, शाकल नगर में धर्मदास नामक वैश्य रहता था । धर्मदास, स्वभाव से बहुत ही आध्यात्मिक था, जो देवताओं व ब्राह्मणों का पूजन किया करता था । एक दिन धर्मदास ने अक्षय तृतीया के बारे में सुना कि वैशाख शुक्ल की तृतीया तिथि को देवताओं का पूजन व ब्राह्मणों को दिया हुआ दान अक्षय हो जाता है ।

यह सुनकर वैश्य ने अक्षय तृतीया के दिन गंगा स्नान कर, अपने पितरों का तर्पण किया । स्नान के बाद घर जाकर देवी देवताओं का विधि विधान से पूजन कर, ब्राह्मणों को अन्न, सत्तू, दही, चना, गेहूं, गुड़, ईख, खांड आदि का श्रद्धा भाव से दान किया ।

धर्मदास की पत्नी, उसे बार बार मना करती लेकिन धर्मदास अक्षय तृतीया को दान जरूर करता था । कुछ समय बाद धर्मदास की मृत्यु हो गई । कुछ समय पश्चात उसका पुनर्जन्म कुशावती नगर के राजा के रूप में हुआ। कहा जाता है कि अपने पूर्व जन्म में किए गए दान के प्रभाव से ही धर्मदास को राजयोग मिला । अक्षय तृतीया को किया गया कार्य अत्यंत शुभ परिणाम देने वाला होता है ।

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